Best 99+ Kabir Ke Dohe | Kabir Das Ke Dohe

नमस्कार दोस्तों, आज के इस आर्टिकल में आप जानने वाले हो Kabir Ke Dohe. जो आपको बहुत अच्छी शिख देंगे।

हमने इस आर्टिकल में बहुत ही भेतरीन Kabir Das Ke Dohe डाला है जो आपको बहुत पसंद आएंगे।

तो चलिए शुरू करते है Kabir Das Ke Dohe.

Best Kabir Das Ke Dohe

Best Kabir Das Ke Dohe
Best Kabir Das Ke Dohe
गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पाँय ।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय॥
भावार्थ: कबीर दास जी इस दोहे में कहते हैं कि अगर हमारे सामने गुरु और भगवान दोनों एक साथ खड़े हों तो आप किसके चरण स्पर्श करेंगे?
गुरु ने अपने ज्ञान से ही हमें भगवान से मिलने का रास्ता बताया है इसलिए गुरु की महिमा भगवान से भी ऊपर है और हमें गुरु के चरण स्पर्श करने चाहिए।

Best Kabir Ke Dohe

Best Kabir Ke Dohe
Best Kabir Ke Dohe
यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान ।

शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान ।
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि यह जो शरीर है वो विष जहर से भरा हुआ है और गुरु अमृत की खान हैं।
अगर अपना शीशसर देने के बदले में आपको कोई सच्चा गुरु मिले तो ये सौदा भी बहुत सस्ता है।

Best Kabir Ke Dohe

Kabir Ke Dohe
Kabir Ke Dohe
सब धरती काजग करू, लेखनी सब वनराज ।

सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाए ।
भावार्थ: अगर मैं इस पूरी धरती के बराबर बड़ा कागज बनाऊं और दुनियां के सभी वृक्षों की कलम बना लूँ और
सातों समुद्रों के बराबर स्याही बना लूँ तो भी गुरु के गुणों को लिखना संभव नहीं है।

Best Kabir Das Ke Dohe

Kabir Das Ke Dohe
Kabir Das Ke Dohe
ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये ।

औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए ।
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि इंसान को ऐसी भाषा बोलनी चाहिए जो सुनने वाले के मन को बहुत अच्छी लगे।
ऐसी भाषा दूसरे लोगों को तो सुख पहुँचाती ही है, इसके साथ खुद को भी बड़े आनंद का अनुभव होता है।

Best Kabir Ke Dohe

Kabir Ke Dohe
Kabir Ke Dohe
बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर ।

पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर ।
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि खजूर का पेड़ बेशक बहुत बड़ा होता है लेकिन ना तो वो किसी को छाया देता है और फल भी बहुत दूरऊँचाई  पे लगता है।
इसी तरह अगर आप किसी का भला नहीं कर पा रहे तो ऐसे बड़े होने से भी कोई फायदा नहीं है।

Best Kabir Ke Dohe

Best Kabir Ke Dohe
Best Kabir Ke Dohe
निंदक नियेरे राखिये, आँगन कुटी छावायें ।

बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुहाए ।
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि निंदकहमेशा दूसरों की बुराइयां करने वाले लोगों को हमेशा अपने पास रखना चाहिए,
क्यूंकि ऐसे लोग अगर आपके पास रहेंगे तो आपकी बुराइयाँ आपको बताते रहेंगे और आप आसानी से अपनी गलतियां सुधार सकते हैं।
इसीलिए कबीर जी ने कहा है कि निंदक लोग इंसान का स्वभाव शीतल बना देते हैं।

Best Kabir Das Ke Dohe

Kabir Das Ke Dohe
Kabir Das Ke Dohe
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय ।

जो मन देखा आपना, मुझ से बुरा न कोय ।
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि मैं सारा जीवन दूसरों की बुराइयां देखने में लगा रहा लेकिन
जब मैंने खुद अपने मन में झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई इंसान नहीं है।
मैं ही सबसे स्वार्थी और बुरा हूँ भावार्थात हम लोग दूसरों की बुराइयां बहुत देखते हैं लेकिन अगर आप खुद के अंदर झाँक कर देखें तो पाएंगे कि हमसे बुरा कोई इंसान नहीं है।

Best Kabir Das Ke Dohe

दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय ।

जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे को होय ।
भावार्थ: दुःख में हर इंसान ईश्वर को याद करता है लेकिन सुख में सब ईश्वर को भूल जाते हैं। अगर सुख में भी ईश्वर को याद करो तो दुःख कभी आएगा ही नहीं।

Best Kabir Ke Dohe

माटी कहे कुमार से, तू क्या रोंदे मोहे ।

एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदुंगी तोहे ।
भावार्थ: जब कुम्हार बर्तन बनाने के लिए मिटटी को रौंद रहा था, तो मिटटी कुम्हार से कहती है – तू मुझे रौंद रहा है,
एक दिन ऐसा आएगा जब तू इसी मिटटी में विलीन हो जायेगा और मैं तुझे रौंदूंगी।

Best Kabir Das Ke Dohe

पानी केरा बुदबुदा, अस मानस की जात ।

देखत ही छुप जाएगा है, ज्यों सारा परभात ।
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि इंसान की इच्छाएं एक पानी के बुलबुले के समान हैं जो पल भर में बनती हैं और पल भर में खत्म।
जिस दिन आपको सच्चे गुरु के दर्शन होंगे उस दिन ये सब मोह माया और सारा अंधकार छिप जायेगा।

Best Kabir Ke Dohe

चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोये ।

दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोए ।
भावार्थ: चलती चक्की को देखकर कबीर दास जी के आँसू निकल आते हैं और वो कहते हैं कि चक्की के  पाटों के बीच में कुछ साबुत नहीं बचता।

Best Kabir Ke Dohe

मलिन आवत देख के, कलियन कहे पुकार ।

फूले फूले चुन लिए, कलि हमारी बार ।
भावार्थ: मालिन को आते देखकर बगीचे की कलियाँ आपस में बातें करती हैं कि आज मालिन ने फूलों को तोड़ लिया और कल हमारी बारी आ जाएगी।
भावार्थात आज आप जवान हैं कल आप भी बूढ़े हो जायेंगे और एक दिन मिटटी में मिल जाओगे। आज की कली, कल फूल बनेगी।

Best Kabir Das Ke Dohe

काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ।

पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब ।
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि हमारे पास समय बहुत कम है, जो काम कल करना है वो आज करो,
और जो आज करना है वो अभी करो, क्यूंकि पलभर में प्रलय जो जाएगी फिर आप अपने काम कब करेंगे।

Best Kabir Ke Dohe

ज्यों तिल माहि तेल है, ज्यों चकमक में आग ।

तेरा साईं तुझ ही में है, जाग सके तो जाग ।
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं जैसे तिल के अंदर तेल होता है, और आग के अंदर रौशनी होती है ठीक वैसे ही हमारा ईश्वर हमारे अंदर ही विद्धमान है, अगर ढूंढ सको तो ढूढ लो।

Best Kabir Das Ke Dohe

जहाँ दया तहा धर्म है, जहाँ लोभ वहां पाप ।

जहाँ क्रोध तहा काल है, जहाँ क्षमा वहां आप ।
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि जहाँ दया है वहीँ धर्म है और जहाँ लोभ है वहां पाप है, और जहाँ क्रोध है वहां सर्वनाश है और जहाँ क्षमा है वहाँ ईश्वर का वास होता है।

Best Kabir Ke Dohe

जो घट प्रेम न संचारे, जो घट जान सामान ।

जैसे खाल लुहार की, सांस लेत बिनु प्राण ।
भावार्थ: जिस इंसान अंदर दूसरों के प्रति प्रेम की भावना नहीं है वो इंसान पशु के समान है।

Best Kabir Das Ke Dohe

जल में बसे कमोदनी, चंदा बसे आकाश ।

जो है जा को भावना सो ताहि के पास ।
भावार्थ: कमल जल में खिलता है और चन्द्रमा आकाश में रहता है। लेकिन चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब जब जल में चमकता है
तो कबीर दास जी कहते हैं कि कमल और चन्द्रमा में इतनी दूरी होने के बावजूद भी दोनों कितने पास है।
जल में चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब ऐसा लगता है जैसे चन्द्रमा खुद कमल के पास आ गया हो। वैसे ही जब कोई इंसान ईश्वर से प्रेम करता है वो ईश्वर स्वयं चलकर उसके पास आते हैं।

Best Kabir Ke Dohe

जाती न पूछो साधू की, पूछ लीजिये ज्ञान ।

मोल करो तलवार का, पड़ा रहने दो म्यान ।
भावार्थ: साधु से उसकी जाति मत पूछो बल्कि उनसे ज्ञान की बातें करिये, उनसे ज्ञान लीजिए। मोल करना है तो तलवार का करो म्यान को पड़ी रहने दो।

Best Kabir Das Ke Dohe

जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होए ।

यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोए ।
भावार्थ: अगर आपका मन शीतल है तो दुनियां में कोई आपका दुश्मन नहीं बन सकता

Best Kabir Ke Dohe

ते दिन गए अकारथ ही, संगत भई न संग ।

प्रेम बिना पशु जीवन, भक्ति बिना भगवंत ।
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि अब तक जो समय गुजारा है वो व्यर्थ गया, ना कभी सज्जनों की संगति की और ना ही कोई अच्छा काम किया।
प्रेम और भक्ति के बिना इंसान पशु के समान है और भक्ति करने वाला इंसान के ह्रदय में भगवान का वास होता है।

Best Kabir Das Ke Dohe

तीरथ गए से एक फल, संत मिले फल चार ।

सतगुरु मिले अनेक फल, कहे कबीर विचार ।
भावार्थ: तीर्थ करने से एक पुण्य मिलता है, लेकिन संतो की संगति से  पुण्य मिलते हैं। और सच्चे गुरु के पा लेने से जीवन में अनेक पुण्य मिल जाते हैं

Best Kabir Das Ke Dohe

तन को जोगी सब करे, मन को विरला कोय ।

सहजे सब विधि पाइए, जो मन जोगी होए ।
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि लोग रोजाना अपने शरीर को साफ़ करते हैं लेकिन मन को कोई साफ़ नहीं करता।
जो इंसान अपने मन को भी साफ़ करता है वही सच्चा इंसान कहलाने लायक है।

Best Kabir Ke Dohe

प्रेम न बारी उपजे, प्रेम न हाट बिकाए ।

राजा प्रजा जो ही रुचे, सिस दे ही ले जाए ।
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि प्रेम कहीं खेतों में नहीं उगता और नाही प्रेम कहीं बाजार में बिकता है।
जिसको प्रेम चाहिए उसे अपना शीशक्रोध, काम, इच्छा, भय त्यागना होगा।

Best Kabir Das Ke Dohe

जिन घर साधू न पुजिये, घर की सेवा नाही ।

ते घर मरघट जानिए, भुत बसे तिन माही ।
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि जिस घर में साधु और सत्य की पूजा नहीं होती, उस घर में पाप बसता है।
ऐसा घर तो मरघट के समान है जहाँ दिन में ही भूत प्रेत बसते हैं।

Best Kabir Ke Dohe

साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय।

सार-सार को गहि रहै थोथा देई उडाय।
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि एक सज्जन पुरुष में सूप जैसा गुण होना चाहिए। जैसे सूप में अनाज के दानों को अलग कर दिया जाता है
वैसे ही सज्जन पुरुष को अनावश्यक चीज़ों को छोड़कर केवल अच्छी बातें ही ग्रहण करनी चाहिए।

Best Kabir Das Ke Dohe

पाछे दिन पाछे गए हरी से किया न हेत ।

अब पछताए होत क्या, चिडिया चुग गई खेत ।
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि बीता समय निकल गया, आपने ना ही कोई परोपकार किया और नाही ईश्वर का ध्यान किया।
अब पछताने से क्या होता है, जब चिड़िया चुग गयी खेत।

Best Kabir Ke Dohe

जब मैं था तब हरी नहीं, अब हरी है मैं नाही ।

सब अँधियारा मिट गया, दीपक देखा माही ।
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि जब मेरे अंदर अहंकारमैं था, तब मेरे ह्रदय में हरीईश्वर का वास नहीं था।
और अब मेरे ह्रदय में हरीईश्वर का वास है तो मैंअहंकार नहीं है। जब से मैंने गुरु रूपी दीपक को पाया है तब से मेरे अंदर का अंधकार खत्म हो गया है।

Best Kabir Das Ke Dohe

नहाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाए ।

मीन सदा जल में रहे, धोये बास न जाए ।
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि आप कितना भी नहा धो लीजिए, लेकिन अगर मन साफ़ नहीं हुआ तो उसे नहाने का क्या फायदा,
जैसे मछली हमेशा पानी में रहती है लेकिन फिर भी वो साफ़ नहीं होती, मछली में तेज बदबू आती है।

Best Kabir Ke Dohe

प्रेम पियाला जो पिए, सिस दक्षिणा देय ।

लोभी शीश न दे सके, नाम प्रेम का लेय ।
भावार्थ: जिसको ईश्वर प्रेम और भक्ति का प्रेम पाना है उसे अपना शीशकाम, क्रोध, भय, इच्छा को त्यागना होगा।
लालची इंसान अपना शीशकाम, क्रोध, भय, इच्छा तो त्याग नहीं सकता लेकिन प्रेम पाने की उम्मीद रखता है।

Best Kabir Das Ke Dohe

कबीरा सोई पीर है, जो जाने पर पीर ।

जो पर पीर न जानही, सो का पीर में पीर ।
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि जो इंसान दूसरे की पीड़ा और दुःख को समझता है वही सज्जन पुरुष है और जो दूसरे की पीड़ा ही ना समझ सके ऐसे इंसान होने से क्या फायदा।

Best Kabir Ke Dohe

कबीरा ते नर अँध है, गुरु को कहते और ।

हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ।
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि वे लोग अंधे और मूर्ख हैं जो गुरु की महिमा को नहीं समझ पाते।
अगर ईश्वर आपसे रूठ गया तो गुरु का सहारा है लेकिन अगर गुरु आपसे रूठ गया तो दुनियां में कहीं आपका सहारा नहीं है।

Best Kabir Das Ke Dohe

कबीर सुता क्या करे, जागी न जपे मुरारी ।

एक दिन तू भी सोवेगा, लम्बे पाँव पसारी ।
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि तू क्यों हमेशा सोया रहता है, जाग कर ईश्वर की भक्ति कर, नहीं तो एक दिन तू लम्बे पैर पसार कर हमेशा के लिए सो जायेगा।

Best Kabir Ke Dohe

नहीं शीतल है चंद्रमा, हिम नहीं शीतल होय ।

कबीर शीतल संत जन, नाम सनेही होय ।
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि चन्द्रमा भी उतना शीतल नहीं है और हिमबर्फ भी उतना शीतल नहीं होती जितना शीतल सज्जन पुरुष हैं।
सज्जन पुरुष मन से शीतल और सभी से स्नेह करने वाले होते हैं।

Best Kabir Das Ke Dohe

पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय ।

ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ।
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि लोग बड़ी से बड़ी पढाई करते हैं लेकिन कोई पढ़कर पंडित या विद्वान नहीं बन पाता।
जो इंसान प्रेम का ढाई अक्षर पढ़ लेता है वही सबसे विद्वान् है।

Best Kabir Das Ke Dohe 

राम बुलावा भेजिया, दिया कबीरा रोय ।

जो सुख साधू संग में, सो बैकुंठ न होय ।
भावार्थ: जब मृत्यु का समय नजदीक आया और राम के दूतों का बुलावा आया तो कबीर दास जी रो पड़े क्यूंकि
जो आनंद संत और सज्जनों की संगति में है उतना आनंद तो स्वर्ग में भी नहीं होगा।

Best Kabir Ke Dohe

शीलवंत सबसे बड़ा सब रतनन की खान ।

तीन लोक की सम्पदा, रही शील में आन ।
भावार्थ: शांत और शीलता सबसे बड़ा गुण है और ये दुनिया के सभी रत्नों से महंगा रत्न है। जिसके पास शीलता है उसके पास मानों तीनों लोकों की संपत्ति है।

Best Kabir Das Ke Dohe

साईं इतना दीजिये, जामे कुटुंब समाये ।

मैं भी भूखा न रहूँ, साधू न भूखा जाए ।
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि हे प्रभु मुझे ज्यादा धन और संपत्ति नहीं चाहिए, मुझे केवल इतना चाहिए जिसमें मेरा परिवार अच्छे से खा सके।
मैं भी भूखा ना रहूं और मेरे घर से कोई भूखा ना जाये।

Best Kabir Ke Dohe

माखी गुड में गडी रहे, पंख रहे लिपटाए ।

हाथ मेल और सर धुनें, लालच बुरी बलाय ।
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि मक्खी पहले तो गुड़ से लिपटी रहती है। अपने सारे पंख और मुंह गुड़ से चिपका लेती है
लेकिन जब उड़ने प्रयास करती है तो उड़ नहीं पाती तब उसे अफ़सोस होता है।
ठीक वैसे ही इंसान भी सांसारिक सुखों में लिपटा रहता है और अंत समय में अफ़सोस होता है।

Best Kabir Das Ke Dohe

ज्ञान रतन का जतन कर, माटी का संसार ।

हाय कबीरा फिर गया, फीका है संसार ।
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि ये संसार तो माटी का है, आपको ज्ञान पाने की कोशिश करनी चाहिए नहीं
तो मृत्यु के बाद जीवन और फिर जीवन के बाद मृत्यु यही क्रम चलता रहेगा।

Best Kabir Ke Dohe

कुटिल वचन सबसे बुरा, जा से होत न चार ।

साधू वचन जल रूप है, बरसे अमृत धार ।
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि कड़वे बोल बोलना सबसे बुरा काम है, कड़वे बोल से किसी बात का समाधान नहीं होता। वहीँ सज्जन विचार और बोल अमृत के समान हैं।

Best Kabir Das Ke Dohe

आये है तो जायेंगे, राजा रंक फ़कीर ।

इक सिंहासन चढी चले, इक बंधे जंजीर ।
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि जो इस दुनियां में आया है उसे एक दिन जरूर जाना है।
चाहे राजा हो या फ़क़ीर, अंत समय यमदूत सबको एक ही जंजीर में बांध कर ले जायेंगे।

Best Kabir Ke Dohe

ऊँचे कुल का जनमिया, करनी ऊँची न होय ।

सुवर्ण कलश सुरा भरा, साधू निंदा होय ।
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि ऊँचे कुल में जन्म तो ले लिया लेकिन अगर कर्म ऊँचे नहीं है
तो ये तो वही बात हुई जैसे सोने के लोटे में जहर भरा हो, इसकी चारों ओर निंदा ही होती है।

Best Kabir Das Ke Dohe

रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।

हीरा जन्म अमोल सा, कोड़ी बदले जाय ।
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि रात को सोते हुए गँवा दिया और दिन खाते खाते गँवा दिया। आपको जो ये अनमोल जीवन मिला है वो कोड़ियों में बदला जा रहा है।

Best Kabir Das Ke Dohe

कामी क्रोधी लालची, इनसे भक्ति न होय ।

भक्ति करे कोई सुरमा, जाती बरन कुल खोए ।
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि कामी, क्रोधी और लालची, ऐसे व्यक्तियों से भक्ति नहीं हो पाती।
भक्ति तो कोई सूरमा ही कर सकता है जो अपनी जाति, कुल, अहंकार सबका त्याग कर देता है।

Best Kabir Ke Dohe

 कागा का को धन हरे, कोयल का को देय ।

मीठे वचन सुना के, जग अपना कर लेय ।
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि कौआ किसी का धन नहीं चुराता लेकिन फिर भी कौआ लोगों को पसंद नहीं होता।
वहीँ कोयल किसी को धन नहीं देती लेकिन सबको अच्छी लगती है। ये फर्क है बोली का – कोयल मीठी बोली से सबके मन को हर लेती है।

Best Kabir Das Ke Dohe

लुट सके तो लुट ले, हरी नाम की लुट ।

अंत समय पछतायेगा, जब प्राण जायेगे छुट ।
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि ये संसार ज्ञान से भरा पड़ा है, हर जगह राम बसे हैं। अभी समय है राम की भक्ति करो, नहीं तो जब अंत समय आएगा तो पछताना पड़ेगा।

Best Kabir Das Ke Dohe

तिनका कबहुँ ना निंदये, जो पाँव तले होय ।

कबहुँ उड़ आँखो पड़े, पीर घानेरी होय ।
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि तिनके को पाँव के नीचे देखकर उसकी निंदा मत करिये क्यूंकि अगर हवा से उड़के तिनका आँखों में चला गया तो बहुत दर्द करता है।
वैसे ही किसी कमजोर या गरीब व्यक्ति की निंदा नहीं करनी चाहिए।

Best Kabir Ke Dohe

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।

माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ।
भावार्थ: कबीर दास जी मन को समझाते हुए कहते हैं कि हे मन! दुनिया का हर काम धीरे धीरे ही होता है।
इसलिए सब्र करो। जैसे माली चाहे कितने भी पानी से बगीचे को सींच ले लेकिन वसंत ऋतू आने पर ही फूल खिलते हैं।

Best Kabir Das Ke Dohe

माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर ।

आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर ।
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि मायाधन और इंसान का मन कभी नहीं मरा, इंसान मरता है शरीर बदलता है लेकिन इंसान की इच्छा और ईर्ष्या कभी नहीं मरती।

Best Kabir Ke Dohe

मांगन मरण समान है, मत मांगो कोई भीख,

मांगन से मरना भला, ये सतगुरु की सीख
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि मांगना तो मृत्यु के समान है, कभी किसी से भीख मत मांगो। मांगने से भला तो मरना है।

Best Kabir Das Ke Dohe

ज्यों नैनन में पुतली, त्यों मालिक घर माँहि।

मूरख लोग न जानिए , बाहर ढूँढत जाहिं
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि जैसे आँख के अंदर पुतली है, ठीक वैसे ही ईश्वर हमारे अंदर बसा है।
मूर्ख लोग नहीं जानते और बाहर ही ईश्वर को तलाशते रहते हैं।

Best Kabir Ke Dohe

कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हँसे हम रोये,

ऐसी करनी कर चलो, हम हँसे जग रोये
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि जब हम पैदा हुए थे उस समय सारी दुनिया खुश थी और हम रो रहे थे।
जीवन में कुछ ऐसा काम करके जाओ कि जब हम मरें तो दुनियां रोये और हम हँसे।

Best Kabir Das Ke Dohe

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,

ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि किताबें पढ़ पढ़ कर लोग शिक्षा तो हासिल कर लेते हैं लेकिन कोई ज्ञानी नहीं हो पाता।
जो व्यक्ति प्रेम का ढाई अक्षर पढ़ ले और वही सबसे बड़ा ज्ञानी है, वही सबसे बड़ा पंडित है।

Best Kabir Das Ke Dohe

जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,

मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।
भावार्थ: किसी विद्वान् व्यक्ति से उसकी जाति नहीं पूछनी चाहिए बल्कि ज्ञान की बात करनी चाहिए। असली मोल तो तलवार का होता है म्यान का नहीं।

Best Kabir Ke Dohe

जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,

मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ
भावार्थ: जो लोग लगातार प्रयत्न करते हैं, मेहनत करते हैं वह कुछ ना कुछ पाने में जरूर सफल हो जाते हैं।
जैसे कोई गोताखोर जब गहरे पानी में डुबकी लगाता है तो कुछ ना कुछ लेकर जरूर आता है
लेकिन जो लोग डूबने के भय से किनारे पर ही बैठे रहे हैं उनको जीवन पर्यन्त कुछ नहीं मिलता।

Best Kabir Das Ke Dohe

दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त,

अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत
भावार्थ: इंसान की फितरत कुछ ऐसी है कि दूसरों के अंदर की बुराइयों को देखकर उनके दोषों पर हँसता है, व्यंग करता है
लेकिन अपने दोषों पर कभी नजर नहीं जाती जिसका ना कोई आदि है न अंत।

Best Kabir Ke Dohe

तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय,

कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय
भावार्थ: कबीरदास जी इस दोहे में बताते हैं कि छोटी से छोटी चीज़ की भी कभी निंदा नहीं करनी चाहिए क्यूंकि वक्त आने पर छोटी चीज़ें भी बड़े काम कर सकती हैं।
ठीक वैसे ही जैसे एक छोटा सा तिनका पैरों तले कुचल जाता है लेकिन आंधी चलने पर अगर वही तिनका आँखों में पड़ जाये तो बड़ी तकलीफ देता है।

Best Kabir Das Ke Dohe

अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप,

अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप
भावार्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि ज्यादा बोलना अच्छा नहीं है और ना ही ज्यादा चुप रहना भी अच्छा है
जैसे ज्यादा बारिश अच्छी नहीं होती लेकिन बहुत ज्यादा धूप भी अच्छी नहीं है।

Best Kabir Ke Dohe

कहत सुनत सब दिन गए, उरझि न सुरझ्या मन,

कही कबीर चेत्या नहीं, अजहूँ सो पहला दिन
भावार्थ: केवल कहने और सुनने में ही सब दिन चले गये लेकिन यह मन उलझा ही है अब तक सुलझा नहीं है।
कबीर दास जी कहते हैं कि यह मन आजतक चेता नहीं है यह आज भी पहले जैसा ही है।

Best Kabir Das Ke Dohe

दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार,

तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार
भावार्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि मनुष्य का जन्म मिलना बहुत दुर्लभ है यह शरीर बार बार नहीं मिलता जैसे पेड़ से झड़ा हुआ पत्ता वापस पेड़ पर नहीं लग सकता।

Best Kabir Ke Dohe

बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि,

हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि
भावार्थ: जो व्यक्ति अच्छी वाणी बोलता है वही जानता है कि वाणी अनमोल रत्न है। इसके लिए हृदय रूपी तराजू में शब्दों को तोलकर ही मुख से बाहर आने दें।

Best Kabir Das Ke Dohe

हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना,

आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए, मरम न कोउ जाना
भावार्थ: हिन्दूयों के लिए राम प्यारा है और मुस्लिमों के लिए अल्लाह रहमान प्यारा है। दोनों राम रहीम के चक्कर में आपस में लड़ मिटते हैं लेकिन कोई सत्य को नहीं जान पाया।

Best Kabir Ke Dohe

संत ना छाडै संतई, जो कोटिक मिले असंत ।

चन्दन भुवंगा बैठिया, तऊ सीतलता न तजंत ।
भावार्थ: सज्जन पुरुष किसी भी परिस्थिति में अपनी सज्जनता नहीं छोड़ते चाहे कितने भी दुष्ट पुरुषों से क्यों ना घिरे हों।
ठीक वैसे ही जैसे चन्दन के वृक्ष से हजारों सर्प लिपटे रहते हैं लेकिन वह कभी अपनी शीतलता नहीं छोड़ता।

Best Kabir Das Ke Dohe

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,

जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।
भावार्थ: जब मैं इस संसार में बुराई खोजने चला तो मुझे कोई बुरा न मिला। जब मैंने अपने मन में झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई नहीं है।

Best Kabir Ke Dohe

 पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,

ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
भावार्थ: बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़ कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार पहुँच गए, पर सभी विद्वान न हो सके।
कबीर मानते हैं कि यदि कोई प्रेम या प्यार के केवल ढाई अक्षर ही अच्छी तरह पढ़ ले, भावार्थात प्यार का वास्तविक रूप पहचान ले तो वही सच्चा ज्ञानी होगा।

Best Kabir Das Ke Dohe

 साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय,

सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।
भावार्थ: इस संसार में ऐसे सज्जनों की जरूरत है जैसे अनाज साफ़ करने वाला सूप होता है। जो सार्थक को बचा लेंगे और निरर्थक को उड़ा देंगे।

Best Kabir Ke Dohe

तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय,

कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।
भावार्थ: कबीर कहते हैं कि एक छोटे से तिनके की भी कभी निंदा न करो जो तुम्हारे पांवों के नीचे दब जाता है। यदि कभी वह तिनका उड़कर आँख में आ गिरे तो कितनी गहरी पीड़ा होती है !

Best Kabir Das Ke Dohe

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,

माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।
भावार्थ: मन में धीरज रखने से सब कुछ होता है। अगर कोई माली किसी पेड़ को सौ घड़े पानी से सींचने लगे तब भी फल तो ऋतु  आने पर ही लगेगा !

Best Kabir Ke Dohe

माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,

कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।
भावार्थ: कोई व्यक्ति लम्बे समय तक हाथ में लेकर मोती की माला तो घुमाता है, पर उसके मन का भाव नहीं बदलता,
उसके मन की हलचल शांत नहीं होती। कबीर की ऐसे व्यक्ति को सलाह है कि हाथ की इस माला को फेरना छोड़ कर मन के मोतियों को बदलो या  फेरो।

Best Kabir Das Ke Dohe

जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,

मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।
भावार्थ: सज्जन की जाति न पूछ कर उसके ज्ञान को समझना चाहिए। तलवार का मूल्य होता है न कि उसकी मयान का – उसे ढकने वाले खोल का।

Best Kabir Ke Dohe

दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त,

अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।
भावार्थ: यह मनुष्य का स्वभाव है कि जब वह  दूसरों के दोष देख कर हंसता है, तब उसे अपने दोष याद नहीं आते जिनका न आदि है न अंत।

Best Kabir Das Ke Dohe

जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,

मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।
भावार्थ: जो प्रयत्न करते हैं, वे कुछ न कुछ वैसे ही पा ही लेते  हैं जैसे कोई मेहनत करने वाला गोताखोर गहरे पानी में जाता है और कुछ ले कर आता है।
लेकिन कुछ बेचारे लोग ऐसे भी होते हैं जो डूबने के भय से किनारे पर ही बैठे रह जाते हैं और कुछ नहीं पाते।

Best Kabir Ke Dohe

बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि,

हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।
भावार्थ: यदि कोई सही तरीके से बोलना जानता है तो उसे पता है कि वाणी एक अमूल्य रत्न है। इसलिए वह ह्रदय के तराजू में तोलकर ही उसे मुंह से बाहर आने देता है।

Best Kabir Das Ke Dohe

अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप,

अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।
भावार्थ: न तो अधिक बोलना अच्छा है, न ही जरूरत से ज्यादा चुप रहना ही ठीक है। जैसे बहुत अधिक वर्षा भी अच्छी नहीं और बहुत अधिक धूप भी अच्छी नहीं है।

Best Kabir Ke Dohe

निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय,

बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।
भावार्थ: जो हमारी निंदा करता है, उसे अपने अधिकाधिक पास ही रखना चाहिए। वह तो बिना साबुन और पानी के हमारी कमियां बता कर हमारे स्वभाव को साफ़ करता है।

Best Kabir Das Ke Dohe

दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार,

तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार।
भावार्थ: इस संसार में मनुष्य का जन्म मुश्किल से मिलता है। यह मानव शरीर उसी तरह बार-बार नहीं मिलता जैसे वृक्ष से पत्ता  झड़ जाए तो दोबारा डाल पर नहीं लगता।

Best Kabir Ke Dohe

कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर,

ना काहू से दोस्ती,न काहू से बैर।
भावार्थ: इस संसार में आकर कबीर अपने जीवन में बस यही चाहते हैं कि सबका भला हो और संसार में यदि किसी से दोस्ती नहीं तो दुश्मनी भी न हो !

Best Kabir Das Ke Dohe

हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना,

आपस में दोउ लड़ी-लड़ी  मुए, मरम न कोउ जाना।
भावार्थ: कबीर कहते हैं कि हिन्दू राम के भक्त हैं और तुर्क मुस्लिम को रहमान प्यारा है। इसी बात पर दोनों लड़-लड़ कर मौत के मुंह में जा पहुंचे, तब भी दोनों में से कोई सच को न जान पाया।

Best Kabir Ke Dohe

कहत सुनत सब दिन गए, उरझि न सुरझ्या मन।

कही कबीर चेत्या नहीं, अजहूँ सो पहला दिन।
भावार्थ: कहते सुनते सब दिन निकल गए, पर यह मन उलझ कर न सुलझ पाया। कबीर कहते हैं कि अब भी यह मन होश में नहीं आता। आज भी इसकी अवस्था पहले दिन के समान ही है।

Best Kabir Das Ke Dohe

कबीर लहरि समंद की, मोती बिखरे आई।

बगुला भेद न जानई, हंसा चुनी-चुनी खाई।
भावार्थ:कबीर कहते हैं कि समुद्र की लहर में मोती आकर बिखर गए। बगुला उनका भेद नहीं जानता, परन्तु हंस उन्हें चुन-चुन कर खा रहा है। इसका भावार्थ यह है कि किसी भी वस्तु का महत्व जानकार ही जानता है।

Best Kabir Ke Dohe

जब गुण को गाहक मिले, तब गुण लाख बिकाई।

जब गुण को गाहक नहीं, तब कौड़ी बदले जाई।
भावार्थ: कबीर कहते हैं कि जब गुण को परखने वाला गाहक मिल जाता है तो  गुण की कीमत होती है। पर जब ऐसा गाहक नहीं मिलता, तब गुण कौड़ी के भाव चला जाता है।

 

Best Kabir Das Ke Dohe

कबीर कहा गरबियो, काल गहे कर केस।

ना जाने कहाँ मारिसी, कै घर कै परदेस।
भावार्थ: कबीर कहते हैं कि हे मानव ! तू क्या गर्व करता है? काल अपने हाथों में तेरे केश पकड़े हुए है। मालूम नहीं, वह घर या परदेश में, कहाँ पर तुझे मार डाले।

Best Kabir Ke Dohe

पानी केरा बुदबुदा, अस मानुस की जात।

एक दिना छिप जाएगा,ज्यों तारा परभात।
भावार्थ: कबीर का कथन है कि जैसे पानी के बुलबुले, इसी प्रकार मनुष्य का शरीर क्षणभंगुर है।जैसे प्रभात होते ही तारे छिप जाते हैं, वैसे ही ये देह भी एक दिन नष्ट हो जाएगी।

Best Kabir Das Ke Dohe

हाड़ जलै ज्यूं लाकड़ी, केस जलै ज्यूं घास।

सब तन जलता देखि करि, भया कबीर उदास।
भावार्थ: यह नश्वर मानव देह अंत समय में लकड़ी की तरह जलती है और केश घास की तरह जल उठते हैं। सम्पूर्ण शरीर को इस तरह जलता देख, इस अंत पर कबीर का मन उदासी से भर जाता है।

Best Kabir Das Ke Dohe

जो उग्या सो अन्तबै, फूल्या सो कुमलाहीं।

जो चिनिया सो ढही पड़े, जो आया सो जाहीं।
भावार्थ: इस संसार का नियम यही है कि जो उदय हुआ है,वह अस्त होगा। जो विकसित हुआ है वह मुरझा जाएगा। जो चिना गया है वह गिर पड़ेगा और जो आया है वह जाएगा।

Best Kabir Ke Dohe

झूठे सुख को सुख कहे, मानत है मन मोद।

खलक चबैना काल का, कुछ मुंह में कुछ गोद।
भावार्थ: कबीर कहते हैं कि अरे जीव ! तू झूठे सुख को सुख कहता है और मन में प्रसन्न होता है?
देख यह सारा संसार मृत्यु के लिए उस भोजन के समान है, जो कुछ तो उसके मुंह में है और कुछ गोद में खाने के लिए रखा है।

Best Kabir Das Ke Dohe

ऐसा कोई ना मिले, हमको दे उपदेस।

भौ सागर में डूबता, कर गहि काढै केस।
भावार्थ: कबीर संसारी जनों के लिए दुखित होते हुए कहते हैं कि इन्हें कोई ऐसा पथप्रदर्शक न  मिला जो उपदेश देता और संसार सागर में डूबते हुए इन प्राणियों को अपने हाथों से केश पकड़ कर निकाल लेता।

Best Kabir Ke Dohe

संत ना छाडै संतई, जो कोटिक मिले असंत

चन्दन भुवंगा बैठिया, तऊ सीतलता न तजंत।
भावार्थ: सज्जन को चाहे करोड़ों दुष्ट पुरुष मिलें फिर भी वह अपने भले स्वभाव को नहीं छोड़ता। चन्दन के पेड़ से सांप लिपटे रहते हैं, पर वह अपनी शीतलता नहीं छोड़ता।

Best Kabir Das Ke Dohe

कबीर तन पंछी भया, जहां मन तहां उडी जाइ।

जो जैसी संगती कर, सो तैसा ही फल पाइ।
भावार्थ: कबीर कहते हैं कि संसारी व्यक्ति का शरीर पक्षी बन गया है और जहां उसका मन होता है, शरीर उड़कर वहीं पहुँच जाता है। सच है कि जो जैसा साथ करता है, वह वैसा ही फल पाता है।

Best Kabir Das Ke Dohe

तन को जोगी सब करें, मन को बिरला कोई।

सब सिद्धि सहजे पाइए, जे मन जोगी होइ।
भावार्थ: शरीर में भगवे वस्त्र धारण करना सरल है, पर मन को योगी बनाना बिरले ही व्यक्तियों का काम है य़दि मन योगी हो जाए तो सारी सिद्धियाँ सहज ही प्राप्त हो जाती हैं।

Best Kabir Das Ke Dohe

कबीर सो धन संचे, जो आगे को होय।

सीस चढ़ाए पोटली, ले जात न देख्यो कोय।
भावार्थ: कबीर कहते हैं कि उस धन को इकट्ठा करो जो भविष्य में काम आए। सर पर धन की गठरी बाँध कर ले जाते तो किसी को नहीं देखा।

Best Kabir Ke Dohe

माया मुई न मन मुआ, मरी मरी गया सरीर।

आसा त्रिसना न मुई, यों कही गए कबीर ।
भावार्थ: कबीर कहते हैं कि संसार में रहते हुए न माया मरती है न मन। शरीर न जाने कितनी बार मर चुका पर मनुष्य की आशा और तृष्णा कभी नहीं मरती, कबीर ऐसा कई बार कह चुके हैं।

Best Kabir Das Ke Dohe

 मन हीं मनोरथ छांड़ी दे, तेरा किया न होई।

पानी में घिव निकसे, तो रूखा खाए न कोई।
भावार्थ: मनुष्य मात्र को समझाते हुए कबीर कहते हैं कि मन की इच्छाएं छोड़ दो , उन्हें तुम अपने बूते पर पूर्ण नहीं कर सकते। यदि पानी से घी निकल आए, तो रूखी रोटी कोई न खाएगा।

Best Kabir Das Ke Dohe

जब मैं था तब हरी नहीं, अब हरी है मैं नाही ।

सब अँधियारा मिट गया, दीपक देखा माही ।
भावार्थ: जब मैं अपने अहंकार में डूबा था – तब प्रभु को न देख पाता था – लेकिन जब गुरु ने ज्ञान का दीपक मेरे भीतर प्रकाशित किया तब अज्ञान का सब अन्धकार मिट गया
ज्ञान की ज्योति से अहंकार जाता रहा और ज्ञान के आलोक में प्रभु को पाया।

Best Kabir Ke Dohe

कबीर सुता क्या करे, जागी न जपे मुरारी ।

एक दिन तू भी सोवेगा, लम्बे पाँव पसारी ।
भावार्थ: कबीर कहते हैं – अज्ञान की नींद में सोए क्यों रहते हो? ज्ञान की जागृति को हासिल कर प्रभु का नाम लो।
सजग होकर प्रभु का ध्यान करो।वह दिन दूर नहीं जब तुम्हें गहन निद्रा में सो ही जाना है – जब तक जाग सकते हो जागते क्यों नहीं? प्रभु का नाम स्मरण क्यों नहीं करते ?

Best Kabir Das Ke Dohe

आछे / पाछे दिन पाछे गए हरी से किया न हेत ।

अब पछताए होत क्या, चिडिया चुग गई खेत ।
भावार्थ: देखते ही देखते सब भले दिन – अच्छा समय बीतता चला गया – तुमने प्रभु से लौ नहीं लगाई – प्यार नहीं किया समय बीत जाने पर पछताने से क्या मिलेगा?
पहले जागरूक न थे – ठीक उसी तरह जैसे कोई किसान अपने खेत की रखवाली ही न करे और देखते ही देखते पंछी उसकी फसल बर्बाद कर जाएं।

Best Kabir Ke Dohe

रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।

हीरा जन्म अमोल सा, कोड़ी बदले जाय ।
भावार्थ: रात नींद में नष्ट कर दी – सोते रहे – दिन में भोजन से फुर्सत नहीं मिली यह मनुष्य जन्म हीरे के सामान बहुमूल्य था
जिसे तुमने व्यर्थ कर दिया – कुछ सार्थक किया नहीं तो जीवन का क्या मूल्य बचा ? एक कौड़ी –

Best Kabir Das Ke Dohe

बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।

पंछी को छाया नहीं फल लागे अति दूर ।
भावार्थ:  खजूर के पेड़ के समान बड़ा होने का क्या लाभ, जो ना ठीक से किसी को छाँव दे पाता है और न ही उसके फल सुलभ होते हैं।

Best Kabir Das Ke Dohe

हरिया जांणे रूखड़ा, उस पाणी का नेह।

सूका काठ न जानई, कबहूँ बरसा मेंह।
भावार्थ: पानी के स्नेह को हरा वृक्ष ही जानता है।सूखा काठ – लकड़ी क्या जाने कि कब पानी बरसा?
भावार्थात सहृदय ही प्रेम भाव को समझता है। निर्मम मन इस भावना को क्या जाने ?

Best Kabir Ke Dohe

झिरमिर- झिरमिर बरसिया, पाहन ऊपर मेंह।

माटी गलि सैजल भई, पांहन बोही तेह।
भावार्थ: बादल पत्थर के ऊपर झिरमिर करके बरसने लगे। इससे मिट्टी तो भीग कर सजल हो गई किन्तु पत्थर वैसा का वैसा बना रहा।

Best Kabir Das Ke Dohe

कहत सुनत सब दिन गए, उरझी न सुरझ्या मन।

कहि कबीर चेत्या नहीं, अजहूँ सो पहला दिन।
भावार्थ: कहते सुनते सब दिन बीत गए, पर यह मन उलझ कर न सुलझ पाया ! कबीर कहते हैं कि यह मन अभी भी होश में नहीं आता।
आज भी इसकी अवस्था पहले दिन के ही समान है।

Best Kabir Ke Dohe

कबीर थोड़ा जीवना, मांड़े बहुत मंड़ाण।

कबीर थोड़ा जीवना, मांड़े बहुत मंड़ाण।
भावार्थ: बादल पत्थर के ऊपर झिरमिर करके बरसने लगे। इससे मिट्टी तो भीग कर सजल हो गई किन्तु पत्थर वैसा का वैसा बना रहा।

Best Kabir Das Ke Dohe

झिरमिर- झिरमिर बरसिया, पाहन ऊपर मेंह।

माटी गलि सैजल भई, पांहन बोही तेह।
भावार्थ: थोड़ा सा जीवन है, उसके लिए मनुष्य अनेक प्रकार के प्रबंध करता है। चाहे राजा हो या निर्धन चाहे बादशाह – सब खड़े खड़े ही नष्ट हो गए।

Best Kabir Das Ke Dohe

इक दिन ऐसा होइगा, सब सूं पड़े बिछोह।

राजा राणा छत्रपति, सावधान किन होय।
भावार्थ: एक दिन ऐसा जरूर आएगा जब सबसे बिछुड़ना पडेगा। हे राजाओं ! हे छत्रपतियों ! तुम अभी से सावधान क्यों नहीं हो जाते !

Best Kabir Ke Dohe

कबीर प्रेम न चक्खिया,चक्खि न लिया साव।

सूने घर का पाहुना, ज्यूं आया त्यूं जाव।
भावार्थ: कबीर कहते हैं कि जिस व्यक्ति ने प्रेम को चखा नहीं, और चख कर स्वाद नहीं लिया, वह उसअतिथि के समान है
जो सूने, निर्जन घर में जैसा आता है, वैसा ही चला भी जाता है, कुछ प्राप्त नहीं कर पाता।

Best Kabir Das Ke Dohe

मान, महातम, प्रेम रस, गरवा तण गुण नेह।

ए सबही अहला गया, जबहीं कह्या कुछ देह।
भावार्थ: मान, महत्त्व, प्रेम रस, गौरव गुण तथा स्नेह – सब बाढ़ में बह जाते हैं जब किसी मनुष्य से कुछ देने के लिए कहा जाता है।

Best Kabir Ke Dohe

जाता है सो जाण दे, तेरी दसा न जाइ।

खेवटिया की नांव ज्यूं, घने मिलेंगे आइ।
भावार्थ: जो जाता है उसे जाने दो। तुम अपनी स्थिति को, दशा को न जाने दो। यदि तुम अपने स्वरूप में बने रहे तो केवट की नाव की तरह अनेक व्यक्ति आकर तुमसे मिलेंगे।

Best Kabir Das Ke Dohe

मानुष जन्म दुलभ है, देह न बारम्बार।

तरवर थे फल झड़ी पड्या,बहुरि न लागे डारि।
भावार्थ: मानव जन्म पाना कठिन है। यह शरीर बार-बार नहीं मिलता। जो फल वृक्ष से नीचे गिर पड़ता है वह पुन: उसकी डाल पर नहीं लगता ।

Best Kabir Das Ke Dohe

यह तन काचा कुम्भ है,लिया फिरे था साथ।

ढबका लागा फूटिगा, कछू न आया हाथ।
भावार्थ: यह शरीर कच्चा घड़ा है जिसे तू साथ लिए घूमता फिरता था।जरा-सी चोट लगते ही यह फूट गया। कुछ भी हाथ नहीं आया।

Best Kabir Ke Dohe

मैं मैं बड़ी बलाय है, सकै तो निकसी भागि।

कब लग राखौं हे सखी, रूई लपेटी आगि।
भावार्थ: अहंकार बहुत बुरी वस्तु है। हो सके तो इससे निकल कर भाग जाओ। मित्र, रूई में लिपटी इस अग्नि – अहंकार – को मैं कब तक अपने पास रखूँ?

Best Kabir Das Ke Dohe

कबीर बादल प्रेम का, हम पर बरसा आई ।

अंतरि भीगी आतमा, हरी भई बनराई ।
भावार्थ: कबीर कहते हैं – प्रेम का बादल मेरे ऊपर आकर बरस पडा  – जिससे अंतरात्मा  तक भीग गई,
आस पास पूरा परिवेश हरा-भरा हो गया – खुश हाल हो गया – यह प्रेम का अपूर्व प्रभाव है ! हम इसी प्रेम में क्यों नहीं जीते !

Best Kabir Ke Dohe

जिहि घट प्रेम न प्रीति रस, पुनि रसना नहीं नाम।

ते नर या संसार में , उपजी भए बेकाम ।
भावार्थ: जिनके ह्रदय में न तो प्रीति है और न प्रेम का स्वाद, जिनकी जिह्वा पर राम का नाम नहीं रहता
वे मनुष्य इस संसार में उत्पन्न हो कर भी व्यर्थ हैं। प्रेम जीवन की सार्थकता है। प्रेम रस में डूबे रहना जीवन का सार है।

Best Kabir Das Ke Dohe

लंबा मारग दूरि घर, बिकट पंथ बहु मार।

कहौ संतों क्यूं पाइए, दुर्लभ हरि दीदार।
भावार्थ: घर दूर है मार्ग लंबा है रास्ता भयंकर है और उसमें अनेक पातक चोर ठग हैं। हे सज्जनों !
कहो , भगवान् का दुर्लभ दर्शन कैसे प्राप्त हो?संसार में जीवन कठिन  है – अनेक बाधाएं हैं
विपत्तियां हैं – उनमें पड़कर हम भरमाए रहते हैं – बहुत से आकर्षण हमें अपनी ओर खींचते रहते हैं – हम अपना लक्ष्य भूलते रहते हैं – अपनी पूंजी गंवाते रहते हैं।

Best Kabir Das Ke Dohe

इस तन का दीवा करों, बाती मेल्यूं जीव।

लोही सींचौं तेल ज्यूं, कब मुख देखों पीव।
भावार्थ: इस शरीर को दीपक बना लूं, उसमें प्राणों की बत्ती डालूँ और रक्त से तेल की तरह सींचूं – इस तरह दीपक जला कर मैं अपने प्रिय के मुख का दर्शन कब कर पाऊंगा?
ईश्वर  से लौ लगाना उसे पाने की चाह करना उसकी भक्ति में तन-मन  को लगाना एक साधना है तपस्या है – जिसे कोई कोई विरला ही कर पाता है !

Best Kabir Ke Dohe

नैना अंतर आव तू, ज्यूं हौं नैन झंपेउ।

ना हौं देखूं और को न तुझ देखन देऊँ।
भावार्थ: हे प्रिय !  प्रभु  तुम इन दो नेत्रों की राह से मेरे भीतर आ जाओ और फिर मैं अपने इन नेत्रों को बंद कर लूं !
फिर न तो मैं किसी दूसरे  को देखूं और न ही किसी और को तुम्हें देखने दूं !

Best Kabir Das Ke Dohe

कबीर रेख सिन्दूर की काजल दिया न जाई।

नैनूं रमैया रमि रहा  दूजा कहाँ समाई ।
भावार्थ: कबीर  कहते हैं कि जहां सिन्दूर की रेखा है – वहां काजल नहीं दिया जा सकता। जब नेत्रों में राम विराज रहे हैं तो वहां कोई अन्य कैसे निवास कर सकता है ?

Best Kabir Das Ke Dohe

कबीर सीप समंद की, रटे पियास पियास ।

समुदहि तिनका करि गिने, स्वाति बूँद की आस ।
भावार्थ: कबीर कहते हैं कि समुद्र की सीपी प्यास प्यास रटती रहती है।  स्वाति नक्षत्र की बूँद की आशा लिए हुए समुद्र की अपार जलराशि को तिनके के बराबर समझती है।
हमारे मन में जो पाने की ललक है जिसे पाने की लगन है, उसके बिना सब निस्सार है।

Best Kabir Ke Dohe

सातों सबद जू बाजते घरि घरि होते राग ।

ते मंदिर खाली परे बैसन लागे काग ।
भावार्थ: कबीर कहते हैं कि जिन घरों में सप्त स्वर गूंजते थे, पल पल उत्सव मनाए जाते थे, वे घर भी अब खाली पड़े हैं
उनपर कौए बैठने लगे हैं। हमेशा एक सा समय तो नहीं रहता !
जहां खुशियाँ थी वहां गम छा जाता है जहां हर्ष था वहां विषाद डेरा डाल सकता है – यह  इस संसार में होता है !।

Best Kabir Das Ke Dohe

कबीर कहा गरबियौ, ऊंचे देखि अवास ।

काल्हि परयौ भू लेटना ऊपरि जामे घास।
भावार्थ: कबीर कहते है कि ऊंचे भवनों को देख कर क्या गर्व करते हो ? कल या परसों ये ऊंचाइयां और आप भी धरती पर लेट जाएंगे ध्वस्त हो जाएंगे और ऊपर से घास उगने लगेगी !
वीरान सुनसान हो जाएगा जो अभी हंसता खिलखिलाता घर आँगन है ! इसलिए कभी गर्व न करना चाहिए

Best Kabir Das Ke Dohe

जांमण मरण बिचारि करि कूड़े काम निबारि ।

जिनि पंथूं तुझ चालणा सोई पंथ संवारि ।
भावार्थ: जन्म और मरण का विचार करके , बुरे कर्मों को छोड़ दे। जिस मार्ग पर तुझे चलना है उसी मार्ग का स्मरण  कर – उसे ही याद रख – उसे ही संवार सुन्दर बना।

Best Kabir Ke Dohe

बिन रखवाले बाहिरा चिड़िये खाया खेत ।

आधा परधा ऊबरै, चेती सकै तो चेत ।
भावार्थ: रखवाले के बिना बाहर से चिड़ियों ने खेत खा लिया। कुछ खेत अब भी बचा है – यदि सावधान हो सकते हो तो हो जाओ – उसे बचा लो !
जीवन में  असावधानी के कारण  इंसान बहुत कुछ गँवा देता है – उसे खबर भी नहीं लगती – नुक्सान हो चुका होता है
यदि हम सावधानी बरतें तो कितने नुक्सान से बच सकते हैं !  इसलिए जागरूक होना है
हर इंसान को – जैसे पराली जलाने की सावधानी बरतते तो दिल्ली में भयंकर वायु प्रदूषण से बचते पर – अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत !

Best Kabir Ke Dohe

कबीर देवल ढहि पड्या ईंट भई सेंवार ।

करी चिजारा सौं प्रीतड़ी ज्यूं ढहे न दूजी बार ।
भावार्थ: कबीर कहते हैं शरीर रूपी देवालय नष्ट हो गया – उसकी ईंट ईंट – अर्थात शरीर का अंग अंग – शैवाल अर्थात काई में बदल गई।
इस देवालय को बनाने वाले प्रभु से प्रेम कर जिससे यह देवालय दूसरी बार नष्ट न हो।

Best Kabir Das Ke Dohe

कबीर मंदिर लाख का, जडियां हीरे लालि ।

दिवस चारि का पेषणा, बिनस जाएगा कालि ।
भावार्थ: यह शरीर लाख का बना  मंदिर है जिसमें हीरे और लाल जड़े हुए हैं।यह चार दिन का खिलौना है कल ही नष्ट हो जाएगा।
शरीर नश्वर है – जतन करके मेहनत  करके उसे सजाते हैं तब उसकी क्षण भंगुरता को भूल जाते हैं
किन्तु सत्य तो इतना ही है कि देह किसी कच्चे खिलौने की तरह टूट फूट जाती है – अचानक ऐसे कि हम जान भी नहीं पाते !

Best Kabir Ke Dohe

कबीर यह तनु जात है सकै तो लेहू बहोरि ।

नंगे हाथूं ते गए जिनके लाख करोडि।
भावार्थ: यह शरीर नष्ट होने वाला है हो सके तो अब भी संभल जाओ – इसे संभाल लो !  जिनके पास लाखों करोड़ों की संपत्ति थी वे भी यहाँ से खाली हाथ ही गए हैं
– इसलिए जीते जी धन संपत्ति जोड़ने में ही न लगे रहो – कुछ सार्थक भी कर लो ! जीवन को कोई दिशा दे लो – कुछ भले काम कर लो !

Best Kabir Das Ke Dohe

हू तन तो सब बन भया करम भए कुहांडि ।

आप आप कूँ काटि है, कहै कबीर बिचारि।
भावार्थ: यह शरीर तो सब जंगल के समान है – हमारे कर्म ही कुल्हाड़ी के समान हैं। इस प्रकार हम खुद अपने आपको काट रहे हैं
यह बात कबीर सोच विचार कर कहते हैं।

Best Kabir Das Ke Dohe

तेरा संगी कोई नहीं सब स्वारथ बंधी लोइ ।

मन परतीति न उपजै, जीव बेसास न होइ ।
भावार्थ: तेरा साथी कोई भी नहीं है। सब मनुष्य स्वार्थ में बंधे हुए हैं, जब तक इस बात की प्रतीति – भरोसा – मन में उत्पन्न नहीं होता
तब तक आत्मा के प्रति विशवास जाग्रत नहीं होता।
भावार्थात वास्तविकता का ज्ञान न होने से मनुष्य संसार में रमा रहता है जब संसार के सच को जान लेता है
इस स्वार्थमय सृष्टि को समझ लेता है – तब ही अंतरात्मा की ओर उन्मुख होता है – भीतर झांकता है !

Best Kabir Das Ke Dohe

मैं मैं मेरी जिनी करै, मेरी सूल बिनास ।

मेरी पग का पैषणा मेरी  गल की पास ।
भावार्थ: ममता और अहंकार में मत फंसो और बंधो – यह मेरा है कि रट मत लगाओ – ये विनाश के मूल हैं – जड़ हैं
– कारण हैं – ममता पैरों की बेडी है और गले की फांसी है।

Best Kabir Das Ke Dohe

कबीर नाव जर्जरी कूड़े खेवनहार ।

हलके हलके तिरि गए बूड़े तिनि सर भार !।
भावार्थ: कबीर कहते हैं कि जीवन की नौका टूटी फूटी है जर्जर है उसे खेने वाले मूर्ख हैं
  जिनके सर पर  विषय वासनाओं  का बोझ है वे तो संसार सागर में डूब जाते हैं – संसारी हो कर रह जाते हैं
दुनिया के धंधों से उबर नहीं पाते – उसी में उलझ कर रह जाते हैं पर जो इनसे मुक्त हैं – हलके हैं
वे तर जाते हैं पार लग जाते हैं भव सागर में डूबने से बच जाते हैं।

Best Kabir Ke Dohe

मन जाणे सब बात जांणत ही औगुन करै ।

काहे की कुसलात कर दीपक कूंवै पड़े ।
भावार्थ: मन सब बातों को जानता है जानता हुआ भी अवगुणों में फंस जाता है जो दीपक हाथ में पकडे हुए भी कुंए में गिर पड़े उसकी कुशल कैसी?

Best Kabir Das Ke Dohe

हिरदा भीतर आरसी मुख देखा नहीं जाई ।

मुख तो तौ परि देखिए जे मन की दुविधा जाई ।
भावार्थ: ह्रदय के अंदर ही दर्पण है परन्तु – वासनाओं की मलिनता के कारण – मुख का स्वरूप दिखाई ही
नहीं देता मुख या अपना चेहरा या वास्तविक स्वरूप तो तभी दिखाई पड सकता  जब मन का संशय मिट जाए !

Best Kabir Ke Dohe

करता था तो क्यूं रहया, जब करि क्यूं पछिताय ।
बोये पेड़ बबूल का, अम्ब कहाँ ते खाय ।
भावार्थ: यदि तू अपने को कर्ता समझता था तो चुप क्यों बैठा रहा? और अब कर्म करके पश्चात्ताप  क्यों करता है?
पेड़ तो बबूल का लगाया है – फिर आम खाने को कहाँ से मिलें ?

Best Kabir Das Ke Dohe

मनहिं मनोरथ छांडी दे, तेरा किया न होइ ।

पाणी मैं घीव नीकसै, तो रूखा खाई न कोइ ।
भावार्थ: मन की इच्छा छोड़ दो।उन्हें तुम अपने बल पर पूरा नहीं कर सकते। यदि जल से घी निकल आवे, तो रूखी रोटी कोई भी न खाएगा!

Best Kabir Ke Dohe

माया मुई न मन मुवा, मरि मरि गया सरीर ।

आसा त्रिष्णा णा मुई यों कहि गया कबीर ।
भावार्थ: न माया मरती है न मन शरीर न जाने कितनी बार मर चुका। आशा, तृष्णा कभी नहीं मरती – ऐसा कबीर कई बार कह चुके हैं।

Best Kabir Das Ke Dohe

कबीर सो धन संचिए जो आगे कूं होइ।

सीस चढ़ाए पोटली, ले जात न देख्या कोइ ।
भावार्थ: कबीर कहते हैं कि उस धन को इकट्ठा करो जो भविष्य में काम दे। सर पर धन की गठरी बांधकर ले जाते तो किसी को नहीं देखा।

Best Kabir Ke Dohe

झूठे को झूठा मिले, दूंणा बंधे सनेह

झूठे को साँचा मिले तब ही टूटे नेह ।
भावार्थ: जब झूठे आदमी को दूसरा झूठा आदमी मिलता है तो दूना प्रेम बढ़ता है। पर जब झूठे को एक सच्चा आदमी मिलता है तभी प्रेम टूट जाता है।

Best Kabir Das Ke Dohe

करता केरे गुन बहुत औगुन कोई नाहिं।

जे दिल खोजों आपना, सब औगुन मुझ माहिं ।
भावार्थ: प्रभु में गुण बहुत हैं – अवगुण कोई नहीं है।जब हम अपने ह्रदय की खोज करते हैं तब समस्त अवगुण अपने ही भीतर पाते हैं।

Best Kabir Ke Dohe

बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलिया कोय ।

जो घर देखा आपना मुझसे बुरा णा कोय।
भावार्थ: मैं इस संसार में बुरे व्यक्ति की खोज करने चला था लेकिन जब अपने घर – अपने मन में झाँक कर देखा तो खुद से बुरा कोई न पाया अर्थात हम दूसरे की बुराई पर नजर रखते हैं पर अपने आप को नहीं निहारते !

Best Kabir Das Ke Dohe

कबीर चन्दन के निडै नींव भी चन्दन होइ।
बूडा बंस बड़ाइता यों जिनी बूड़े कोइ ।
भावार्थ: कबीर कहते हैं कि यदि चंदन के वृक्ष के पास नीम  का वृक्ष हो तो वह भी कुछ सुवास ले लेता है
चंदन का कुछ प्रभाव पा लेता है । लेकिन बांस अपनी लम्बाई – बडेपन – बड़प्पन के कारण डूब जाता है।
इस तरह तो किसी को भी नहीं डूबना चाहिए। संगति का अच्छा प्रभाव ग्रहण करना चाहिए – आपने गर्व में ही न रहना चाहिए ।

Best Kabir Ke Dohe

क्काज्ल केरी कोठारी, मसि के कर्म कपाट।

पांहनि बोई पृथमीं,पंडित पाड़ी बात।
भावार्थ: यह संसार काजल की कोठरी है, इसके कर्म रूपी कपाट कालिमा के ही बने हुए हैं। पंडितों ने पृथ्वीपर पत्थर की मूर्तियाँ स्थापित करके मार्ग का निर्माण किया है।

Best Kabir Das Ke Dohe

मूरख संग न कीजिए ,लोहा जल न तिराई।

कदली सीप भावनग मुख, एक बूँद तिहूँ भाई ।
भावार्थ: मूर्ख का साथ मत करो।मूर्ख लोहे के सामान है जो जल में तैर नहीं पाता  डूब जाता है ।
संगति का प्रभाव इतना पड़ता है कि आकाश से एक बूँद केले के पत्ते पर गिर कर कपूर, सीप के अन्दर गिर कर मोती और सांप के मुख में पड़कर विष बन जाती है।

Best Kabir Das Ke Dohe

ऊंचे कुल क्या जनमिया जे करनी ऊंच न होय।

सुबरन कलस सुरा भरा साधू निन्दै सोय ।
भावार्थ: यदि कार्य उच्च कोटि के नहीं हैं तो उच्च कुल में जन्म लेने से क्या लाभ? सोने का कलश यदि सुरा से भरा है तो साधु उसकी निंदा ही करेंगे।

Best Kabir Ke Dohe

कबीर संगति साध की , कड़े न निर्फल होई ।

चन्दन होसी बावना , नीब न कहसी कोई ।
भावार्थ: कबीर कहते हैं कि साधु  की संगति कभी निष्फल नहीं होती। चन्दन का वृक्ष यदि छोटा – वामन – बौना  भी होगा तो भी उसे कोई नीम का वृक्ष नहीं कहेगा।
वह सुवासित ही रहेगा  और अपने परिवेश को सुगंध ही देगा। आपने आस-पास को खुशबू से ही भरेगा

Best Kabir Das Ke Dohe

जानि बूझि साँचहि तजै, करै झूठ सूं नेह ।

ताकी संगति रामजी, सुपिनै ही जिनि देहु ।
भावार्थ: जो जानबूझ कर सत्य का साथ छोड़ देते हैं झूठ से प्रेम करते हैं हे भगवान् ऐसे लोगों की संगति हमें स्वप्न में भी न देना।

Best Kabir Das Ke Dohe

मन मरया ममता मुई, जहं गई सब छूटी।

जोगी था सो रमि गया, आसणि रही बिभूति ।
भावार्थ: मन को मार डाला ममता भी समाप्त हो गई अहंकार सब नष्ट हो गया जो योगी था वह तो यहाँ से चला गया
अब आसन पर उसकी भस्म – विभूति पड़ी रह गई अर्थात संसार में केवल उसका यश रह गया

Best Kabir Ke Dohe

तरवर तास बिलम्बिए, बारह मांस फलंत ।

सीतल छाया गहर फल, पंछी केलि करंत ।
भावार्थ: कबीर कहते हैं कि ऐसे वृक्ष के नीचे विश्राम करो, जो बारहों महीने फल देता हो ।जिसकी छाया शीतल हो , फल सघन हों और जहां पक्षी क्रीडा करते हों !

Best Kabir Ke Dohe

काची काया मन अथिर थिर थिर  काम करंत ।

ज्यूं ज्यूं नर  निधड़क फिरै त्यूं त्यूं काल हसन्त ।
भावार्थ: शरीर कच्चा अर्थात नश्वर है मन चंचल है परन्तु तुम इन्हें स्थिर मान कर काम  करते हो – इन्हें अनश्वर मानते हो मनुष्य जितना इस संसार में रमकर निडर घूमता है
मगन रहता है – उतना ही काल अर्थात मृत्यु उस पर  हँसता है ! मृत्यु पास है यह जानकर भी इंसान अनजान बना रहता है ! कितनी दुखभरी बात है।

Best Kabir Ke Dohe

जल में कुम्भ कुम्भ  में जल है बाहर भीतर पानी ।

फूटा कुम्भ जल जलहि समाना यह तथ कह्यौ गयानी ।
भावार्थ: जब पानी भरने जाएं तो घडा जल में रहता है और भरने पर जल घड़े के अन्दर आ जाता है इस तरह देखें तो – बाहर और भीतर पानी ही रहता है – पानी की ही सत्ता है।
जब घडा फूट जाए तो उसका जल जल में ही मिल जाता है – अलगाव नहीं रहता – ज्ञानी जन इस तथ्य को कह गए हैं !
आत्मा-परमात्मा दो नहीं एक हैं – आत्मा परमात्मा में और परमात्मा आत्मा में विराजमान है। अंतत: परमात्मा की ही सत्ता है
  जब देह विलीन होती है – वह परमात्मा का ही अंश हो जाती है – उसी में समा जाती है। एकाकार हो जाती है।

Best Kabir Ke Dohe

तू कहता कागद की लेखी मैं कहता आँखिन की देखी ।

मैं कहता सुरझावन हारि, तू राख्यौ उरझाई रे ।
भावार्थ: तुम कागज़ पर लिखी बात को सत्य  कहते हो – तुम्हारे लिए वह सत्य है जो कागज़ पर लिखा है।
किन्तु मैं आंखों देखा सच ही कहता और लिखता हूँ। कबीर पढे-लिखे नहीं थे पर उनकी बातों में सचाई थी।
मैं सरलता से हर बात को सुलझाना चाहता हूँ – तुम उसे उलझा कर क्यों रख देते हो? जितने सरल बनोगे – उलझन से उतने ही दूर हो पाओगे।

Best Kabir Ke Dohe

मन के हारे हार है मन के जीते जीत ।

कहे कबीर हरि पाइए मन ही की परतीत ।
भावार्थ: जीवन में जय पराजय केवल मन की भावनाएं हैं।यदि मनुष्य मन में हार गया – निराश हो गया तो  पराजय है
और यदि उसने मन को जीत लिया तो वह विजेता है। ईश्वर को भी मन के विश्वास से ही पा सकते हैं – यदि प्राप्ति का भरोसा ही नहीं तो कैसे पाएंगे?

Best Kabir Ke Dohe

जब मैं था तब हरि नहीं अब हरि है मैं नाहीं ।

प्रेम गली अति सांकरी जामें दो न समाहीं ।
भावार्थ:  जब तक मन में अहंकार था तब तक ईश्वर का साक्षात्कार न हुआ। जब अहम समाप्त हुआ तभी प्रभु  मिले।
जब ईश्वर का साक्षात्कार हुआ – तब अहम स्वत: नष्ट हो गया। ईश्वर की सत्ता का बोध तभी हुआ जब अहंकार गया।
प्रेम में द्वैत भाव नहीं हो सकता – प्रेम की संकरी – पतली गली में एक ही समा सकता है – अहम् या परम ! परम की प्राप्ति के लिए अहम् का विसर्जन आवश्यक है।